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शुभकामना

रोग मुक्त हो तन सबका , आह्ल्लादित हो मन सबका  | जीवन में नया उछाला हो , हर घर में नया उजाला हो | हो जायें खुशियों की भरमार  , नव - वर्ष कहे यह बारम्बार  |  

नव - वर्ष

खुशियों का झुरमुट ले आया ,  यह नव - वर्ष  अपार  | हर पल , हर क्षण  मिले  सफलता , यह कहे - पुकार - पुकार  | 

ग़ज़ल

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तू पथ पर अपने चलता चल  | मंजिल को पास बुलाता चल | सभी समस्याओं का मिलकर , बात -चीत से  निकले  हल  | कैसी भी हो आग भयानक  , कर सकते हो तुम शीतल  | मंदिर हो या गुरुद्वारा हो  , शीश झुका दें  गंगा जल  | चंदा -तारों से हम सीखें ,  कैसे रहते हैं यह हिलमिल | निश्वार्थ भाव से नदिया कैसे , कल-कल कर बहती अविरल | भेद न करती भारत माँ है  , सब पर फैलाये अपना आँचल | पंकज द्वैष-भावना  त्यागो , जीवन बन जायेगा परिमल  |

दोहा

प्राणी ऐसा जगत में , जन्म न लिया कोय  |  होवे पूरा सदगुणी , अवगुण एक न होय  || पंकज विपदा  साथ दे , उसको अपना मान | जस सुनार घिस- घिस करे ,सोने की पहचान  ||

मम्मी

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आज मैं अपने ब्लॉग पर १००  वीं कविता प्रस्तुत करते हुए अपार प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ  | यह सब आप महान साहित्यकारों के प्यार ,सहयोग और आशीर्वाद के कारण ही संभव हो सका है , इसके लिये मैं आप सबका तहे दिल से आभार प्रगट करते हुए शुक्रिया अदा करता हूँ और आशा करता हूँ की भविष्य में भी ऐसे ही सहयोग प्रदान करते रहेंगे  | आज मातृ दिवस के विशेष अवसर पर  मैं पूजनीय मम्मी के लिये एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ  | आप सभी को मातृ दिवस की हर्दिक शुभकामनायें  | प्यारी - प्यारी मेरी मम्मी | सारे जग से न्यारी मम्मी  |   तुझसे ऊँचा कोई नहीं है , बहुत दुलारी मेरी मम्मी  | रोज सवेरे जगती मम्मी  | मुझमें ध्यान लगाती मम्मी | एक -एक आँसू पर मेरे  , आँसू- धार बहाती  मम्मी   | गुर्वोपरि है मेरी मम्मी  | देवोपरि है मेरी मम्मी  | चलना उसने मुझे सिखाया , मेरी प्राणाधार  है मम्मी  | सभी दुःख हर लेती मम्मी | हम पर प्यार लुटाती मम्मी  | अर्पण कर देती है  तन -मन , ममता -मूर्ति है मेरी मम्मी  |

दोहा

गोयटा जलता देखकर , गोबर हँसता जाय | पंकज क्यों है हँस रहा , कल तेरी बारी आय ||  

आँसू

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आँसू   विभीषण है , लंका का  | निकलते ही  कर देता है  , रहस्योदघाटन  आंतरिक मन का | थके जीवन का  |

अनिवार्य

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भ्रष्टाचार  उन्नति का , पर्याय  बन गया है  | इसीलिए - महँगाई  होना  अनिवार्य हो गया है  |

मुक्तक

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बदलते हुए परिवेश में , जरा देश देखिये  | फैशन रहा है बोल  ,    जरा केश देखिये  | मखमली सेज पर महलों में सो रहे हैं जो, वह दे रहें हैं युद्ध का  ,  आदेश देखिये  |

मुक्तक

इज्म की बैसाखियों से ,चाँद पाया आपने  | संदिग्ध मेघों के सहारे ,रवि छिपाया आपने  | क्षणिक है आनंद तेरा ,तुम  यह न भूलो  ,, शेष कुछ भी न बचेगा ,तूफां आने की देर है  |

उत्थान

हिन्दी संस्थान के , अध्यक्ष ने , हिन्दी उत्थान का ,  बीड़ा उठाया है  | इसीलिए ,उसने अपने बच्चे को , एक , अच्छे कान्वेंट में , भिजवाया है  |

व्यापार

देखो मानुष कर रहा  ,है  मौतों का व्यापार | पंकज यह क्या हो रहा , हर घर अत्याचार  || दूल्हा देखो बिक रहा ,खड़ा है बीच बाज़ार  | लाख -लाख का मोल है ,कैसा यह व्यापार  ||

आदमी

बैठकर बारूद पर ,  तीली जलाता आदमी  | लगाकर आग अपने गाँव में , है घर बचाता आदमी | मंदिरों और मस्जिदों में , है भेद करता आदमी  | पंख जिसके कट चुके हैं , वह  उड़ रहा है आदमी  | विश्व्व की वायु प्रदूषित हो गयी जो , उस हवा को पी रहा है आदमी  | किस पर करोगे विश्वास अब तुम ,आस्तीनी  साँप बन चुका है आदमी  |

संकल्प

      अनगिनत सितारें लाख चमकें , तम वक्ष चीर सकते नहीं हैं  |           भले ही बिछे हों शूल पथ में , शूल पथ रोक सकते नहीं हैं  |                  हौसलों  को पस्त न करना , हिमालय तक चले जाओ ,,                      समर्पण तुम्हारा अगर सत्य है , तो मंजिलें तुम्हे रोक सकती नहीं हैं  |

धर्म- गुरु

लम्बा तिलक लगाकर भैया , लम्बी माला गले में डालो  | पहन कर चोंगा धर्म- गुरु का , जो चाहो सो तुम कर डालो  | नेताओं को साथ में लेकर , परमार्थ -निकेतन धाम बनाओ  | गोरख -धन्धा करो और घूमो ,  पूरे देश पर रंग जमाओ  | धर्म- गुरु के नाम पर तुझसे , हर अफसर भी घबराएगा  |    राजनीति के संरक्षण में , तू सदा फूलता जायेगा  | राम नाम को साथ में लेकर , जिसको चाहो ,मंत्री बनवाओ | मंगल ,शनि की दशा बताकर , जो चाहो, उनसे करवाओ  |

सूरज

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  रोज सवेरे सूरज आकर , जग में उजियाला करता  | चाहे कोई धर्म , मजहब हो , उनमे भेद नहीं करता  | जीवन पथ पर बढते जाओ , हमको राह दिखाता है  | कर्तव्य मार्ग से डिगो नहीं , हमको यही सिखाता है  |

भारत देश

राम -कृष्ण की जन्म भूमि है , प्यारा अपना देश   | जगद गुरु यह कहलाता है , प्यारा भारत देश  | भिन्न - भिन्न हैं वर्ण यहाँ , भिन्न -भिन्न हैं बोली  | भिन्न -भिन्न त्यौहार यहाँ पर , सब मिलकर खेलें होली  | यहाँ हिन्दू औ मुसळमाँ  सब , जाते हैं कावा - काशी | एक सूत्र में बंधें  हुए  हैं , हम सच्चे भारत वासी  | 

तारे

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यह आसमान के नन्हें तारे , चमक  रहे सब मिलकर सारे  | चन्दा से हैं हाथ मिलाते , आसमान में दौड़ लगाते  | अम्बर से गहरा रिश्ता है , यह फूलों का गुलदस्ता है  | कोई न इनको गिन सकता है , कोई न इनको छू सकता है  |

जिन्दगी

कभी आग का शोला बन ,दहकती है जिन्दगी  | कभी किसी का प्यार बन , भटकती है जिन्दगी  | जब - जब सींची गयी, यह श्रम  के  लहू  से  ,, तब उजड़े हुए चमन में , महकती है जिन्दगी  ||

मुक्तक

मासूमों की आँखों में मैंने , जलते अंगारों को देखा  | निर्दोषों  की हत्याओं से , शोणित धारों को बहते देखा  | न्याय व्यवस्था पंगु हो गयी , सत्य  पड़ा लाचार जहाँ ,, उन नगरों के गलियारों में , उठती चीत्कारों को देखा  ||

सावधान !

सावधान ! उनसे रहो , जो बोलें मधु सम बोल  | विश्वास पात्र होते नहीं ,  भेद न उनसे  खोल  ||

दोहा

ठेके देखो शहर के , पा गये मंत्री- दामाद  | अब कौन बचाये शहर को , होने से बरबाद || 

मुक्तक

तुम यदि ठान लो  तो, सूर्य अश्वों का भी मुँह मोड़ सकते हो   | तुम यदि ठान लो तो , मदमस्त तूफ़ान को भी रोक सकते हो  | तुम  भरत - पुत्र  हो , अपने को पहचानो  ................. , चाँद करे यदि गद्दारी  , तो राहू को चाँद बना सकते हो   |

मुक्तक

नैया मैंने तुमको दे दी , पर पतवार नहीं दूँगा  | अनवरत सिलसिला मौतों का ,यह अधिकार नहीं दूँगा  | सौगंध बाबा अमरनाथ की लेकर मैं कहता हूँ   , कश्मीर हमारा प्यारा है , तुमको कश्मीर नहीं दूँगा   |

मुक्तक

बिकता है देखो न्याय जहाँ , ऐसे यह न्यायालय हैं  | सत्ता के गलियारे देखो , बने आज वैश्यालय हैं  | ओहदों को लेकर घूम रहें वो  , चम् -चम् करती कारों में , मंत्रियों के राज महल बन गये , चोरों  के मुख्यालय हैं  |

मुक्तक

  शूल भी क्या फूल भी सब कँटीले हो गये  | डालियों पर जो लगाये फल कसैले हो गये  | बात किसकी अब करूँ आदमी या जानवर की , आदमी तो जानवर से भी विषैले हो गये   |

मुक्तक

शूल मेरा क्या करेंगे , जब शूल पथ मैंने लिया है  | सिन्धु मंथन जब हुआ , सारा गरल मैंने पिया है  | तोप के सम्मुख , वक्ष - ताने हम  खड़े  हैं   , जीभ मेरी जल न पाती , आग का भोजन किया है  |      

मुक्तक

चीर कर वक्ष देख आओ , व्योम का आधार क्या है  | नाप कर उर देख आओ , धरा का आकार क्या  है  | तुम युग के सूरज हो , युग मानव हो ------ झाँक कर तुम देख आओ , क्षितिज के पार क्या है    | 

मुक्तक

बम दिखाकर तुम मुझे भयभीत करना चाहते हो  | दनुजता  का  साथ देकर  रक्त  भरना चाहते   हो   | पंख तो पाये नहीं पर व्योम चुम्बन की पिपासा  , सूर्य - निगलोगे  , नहीं , वे मौत मरना चाहते  हो  |

मुक्तक

मैंने तो दीप जलाये थे  , फिर अंधिआरी कैसे आ छायी  | मैंने तो पुष्प सँजोएँ  थे  , फिर नागफनी कैसे उग आयी  | रात - रात बेचैन रहा , निद्रा को तजकर   ---------- मैंने तो सिन्दूर सजाया था  , फिर राखी कैसे ले आयी   |

मानवता

मानवता  बदल चुकी जब दानवता में  , तो भले गुलाबों में  , क्यों यह ठहरेगी  | जब घर - घर में नागफनी , उग आयी हो   , तो सदा  मनुजता  , काँटों में ही सिहरेगी  |

नेता

गरीबी मत दिखाओ  , छिन जायेगी  | रोटी बचाओ अपनी  , छिन जायेगी  | देखो अरे  ,   नेता आ रहा है  --- जिन्दगी बचाओ अपनी , छिन जायेगी  |

आँसू

कभी बनकर निकलते हैं , दिलों बहार यह आँसू   | कभी बनकर छलकते हैं  , ग़मों बौछार यह आँसू  | मंथन यहाँ होता  , दिलों - दिमाग पर जब हैं | हैं , दिखाते जिन्दगी   की  , तस्वीर यह आँसू  |

दोहा

धनी  हुआ तो क्या हुआ  , जो करे  न कौड़ी दान   | जीवन उसका व्यर्थ है  , जो जीता बिन सम्मान  || जग की चिंता न करे , लक्ष्य , जो पाना होय  | पथ में भूकें श्वान से  , पथ नहिं बाधित होय  || भाग्य सहारे बैठकर , मत  छोड़े  तू  आस  | बुद्धि ,शक्ति ,ज्ञान- बल , सब कुछ तेरे पास  || पंकज परिवर्तन देखकर  , काहे चित्त अधीर  | लाभ - हानि के सोच में , मुद्रा क्यों गम्भीर  ||

सोच

किसी को क्या पड़ी है , तुझे नीचा दिखाने की   | तेरे आमाल काफी हैं  , तेरी हस्ती मिटाने को   |

मुक्त्तक

भीख माँगों  न उनसे , जो खुद माँगतें  हैं   | सहारा माँगों न उनसे , जो खुद छीनतें हैं   | शीश मत झुकाना कभी , उनके सामने , बैसाखियों पर दूसरों की , जो मौज करतें हैं  |

बदलना चाहिए

जहाँ चाँद मिथ्या दर्प से इठला रहा हो | सितारें विषमताओं की बात बोलें  | सूर्य कतरा धूप पर , करता हो दलाली  | गगन के परिवार में , जहाँ हों अपरिमित भेद , ऐसा नभ बदलना चाहिए | नर महा निर्माण का यह सिलसिला | मुझको लीक पर ही, सदा चलता मिला | परम्पराएं विषैली ,हों गयीं हैं  जहाँ  | राहें भुलाने पर तुली हों अब जहाँ  , ऐसा पथ बदलना चाहिए | जहाँ देहरी पर विषमताओं की कीलें जड़ीं  हों | चहुँओर  आँगन में समस्याएं मुहँ बाएँ खड़ीं हों  | जिससे मिलाता हाथ , वोह तो काट लेता  | जिसको समझता भ्रात, वोह  तो नाग  होता  | दोहरी प्रकृति के लोग रहतें हों जहाँ , ऐसा घर बदलना चाहिए | नीड़  का निर्माण करना , सोच का यह धर्म है | जन्मते , मरते पाऊँ शिखर यह  कर्म  है  | सम्भोग से सन्यास तक| आवास से आकाश तक| अधूरा बिम्ब जो देता रहा , ऐसा दर्पण बदलना चाहिए |

मुक्त्तक

                                                                               साधना को तुम मेरी , रीति न कहना  | विश्वास लिख रहा हूँ , गीत न कहना  | दीप , तिमिर से प्यार जब करने लगे , सूर्य आने तक उसे , तुम प्रीति न कहना |

मुक्त्तक

                                    महाभारत  होना तो निश्चित है , अर्जुन को गाण्डीव उठाना होगा | रण बीच खड़ा जब दुश्मन हो , तो शंखनाद करना होगा  | जब कपट खेल खेलना , चाहता  हो काल , तो कैलाश छोड़ शंकर को , धरती पर आना होगा  | सदिंयों से हम छमा दिखातें आयें हैं  | खुलें हृदय से प्यार लुटाते आयें हैं  | कोरी उदारता जब कायरता बन जाये , तो मर्यादा छोड़ , त्रिशूल चलाना होगा  |   

मैं हूँ कोयल

मैं हूँ कोयल प्यारी प्यारी , हर पक्षी से मैं हूँ न्यारी  | डाल  - डाल फुदक -फुदक कर , मैं मीठा गीत सुनाती हूँ  | बागों की मैं रानी हूँ  , सबमें खुशहाली लाती हूँ | मीठे -मीठे सन्देशों से , सबका दर्द मिटाती हूँ  | मैं हूँ कोयल मतवाली , मैं हूँ कोयल काली -काली , मिसरी जैसी  मेरी बोली , मेरी कोयलिया कूँ - कूँ से , झूम उठे क्यारी -क्यारी | मैं हूँ कोयल प्यारी -प्यारी | हर पक्षी से मैं हूँ न्यारी  |

बसंत

सुखद बहारें लेकर आया , फिर से आज बसंत  | मौसम है रंगीन हर तरफ नीले अम्बर के नीचे , प्यारी - प्यारी धूप लग रही आज शीत का हो गया अन्त  | सुखद बहारें लेकर आया , फिर से आज बसंत  | बाग़ - बगीचों की शोभा लगती है कितनी प्यारी , खुशहाली के इस दिन पर झूम रही क्यारी -क्यारी , पीले -पीले पुष्प सुनाते यह सन्देश हैं हमको  , उठो - उठो देखो हर ओर नभ में छाया आज बसंत  | सुखद बहारें लेकर आया , फिर से आज बसंत  | विद्या की देवी सरस्वती हम पर प्यार लुटाती है  , इसीलिए इस दिन पर देखो  उसकी पूजा होती है , इस दिन पर कोयल  हमको  मीठा गीत सुनाती है , कोयल के मीठे स्वर कुंजन में बहता आया आज बसंत | सुखद बहारें लेकर आया , फिर से आज बसंत  | स्वच्छ   आसमां  लगता है इस दिन कितना प्यारा , रंगीन पतंगों से है देखो  भरा  हुआ  नभ   सारा  , पीली - पीली सरसों के संग आया है फलदार बसंत  | सुखद बहारें लेकर आया , फिर से आज बसंत  |  

टमाटर

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लाल टमाटर प्यारा है , हर सब्जी से न्यारा है  | जो भी इसको खाता है , चुस्ती - फुर्ती पाता है  | कभी नहीं  हो  वह  बीमार , सारे जग का पाये प्यार  |

अनार

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  जो भी खाये लाल अनार , शक्ति पाये अपरम्पार   | लाल - लाल तन दमके उसका , हीमोग्लोबिन का भंडार   ||

नव - वर्ष मंगलमय हो

जीवन में आयें नए , नए - नए नित हर्ष   | मंगल - मय हो , हर्ष मय , सुख मय नूतन वर्ष  | | ओम प्रकाश अडिग  रोशन गंज , शाहजहांपुर  २४२००१ मो . न. 09936141826