मानवता

मानवता  बदल चुकी जब दानवता में  ,
तो भले गुलाबों में  , क्यों यह ठहरेगी  |
जब घर - घर में नागफनी , उग आयी हो   ,
तो सदा  मनुजता  , काँटों में ही सिहरेगी  |

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