मुक्तक

मासूमों की आँखों में मैंने , जलते अंगारों को देखा  |
निर्दोषों  की हत्याओं से , शोणित धारों को बहते देखा  |
न्याय व्यवस्था पंगु हो गयी , सत्य  पड़ा लाचार जहाँ ,,
उन नगरों के गलियारों में , उठती चीत्कारों को देखा  ||

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