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आदमी

बैठकर बारूद पर ,  तीली जलाता आदमी  | लगाकर आग अपने गाँव में , है घर बचाता आदमी | मंदिरों और मस्जिदों में , है भेद करता आदमी  | पंख जिसके कट चुके हैं , वह  उड़ रहा है आदमी  | विश्व्व की वायु प्रदूषित हो गयी जो , उस हवा को पी रहा है आदमी  | किस पर करोगे विश्वास अब तुम ,आस्तीनी  साँप बन चुका है आदमी  |

संकल्प

      अनगिनत सितारें लाख चमकें , तम वक्ष चीर सकते नहीं हैं  |           भले ही बिछे हों शूल पथ में , शूल पथ रोक सकते नहीं हैं  |                  हौसलों  को पस्त न करना , हिमालय तक चले जाओ ,,                      समर्पण तुम्हारा अगर सत्य है , तो मंजिलें तुम्हे रोक सकती नहीं हैं  |

धर्म- गुरु

लम्बा तिलक लगाकर भैया , लम्बी माला गले में डालो  | पहन कर चोंगा धर्म- गुरु का , जो चाहो सो तुम कर डालो  | नेताओं को साथ में लेकर , परमार्थ -निकेतन धाम बनाओ  | गोरख -धन्धा करो और घूमो ,  पूरे देश पर रंग जमाओ  | धर्म- गुरु के नाम पर तुझसे , हर अफसर भी घबराएगा  |    राजनीति के संरक्षण में , तू सदा फूलता जायेगा  | राम नाम को साथ में लेकर , जिसको चाहो ,मंत्री बनवाओ | मंगल ,शनि की दशा बताकर , जो चाहो, उनसे करवाओ  |

सूरज

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  रोज सवेरे सूरज आकर , जग में उजियाला करता  | चाहे कोई धर्म , मजहब हो , उनमे भेद नहीं करता  | जीवन पथ पर बढते जाओ , हमको राह दिखाता है  | कर्तव्य मार्ग से डिगो नहीं , हमको यही सिखाता है  |

भारत देश

राम -कृष्ण की जन्म भूमि है , प्यारा अपना देश   | जगद गुरु यह कहलाता है , प्यारा भारत देश  | भिन्न - भिन्न हैं वर्ण यहाँ , भिन्न -भिन्न हैं बोली  | भिन्न -भिन्न त्यौहार यहाँ पर , सब मिलकर खेलें होली  | यहाँ हिन्दू औ मुसळमाँ  सब , जाते हैं कावा - काशी | एक सूत्र में बंधें  हुए  हैं , हम सच्चे भारत वासी  | 

तारे

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यह आसमान के नन्हें तारे , चमक  रहे सब मिलकर सारे  | चन्दा से हैं हाथ मिलाते , आसमान में दौड़ लगाते  | अम्बर से गहरा रिश्ता है , यह फूलों का गुलदस्ता है  | कोई न इनको गिन सकता है , कोई न इनको छू सकता है  |

जिन्दगी

कभी आग का शोला बन ,दहकती है जिन्दगी  | कभी किसी का प्यार बन , भटकती है जिन्दगी  | जब - जब सींची गयी, यह श्रम  के  लहू  से  ,, तब उजड़े हुए चमन में , महकती है जिन्दगी  ||

मुक्तक

मासूमों की आँखों में मैंने , जलते अंगारों को देखा  | निर्दोषों  की हत्याओं से , शोणित धारों को बहते देखा  | न्याय व्यवस्था पंगु हो गयी , सत्य  पड़ा लाचार जहाँ ,, उन नगरों के गलियारों में , उठती चीत्कारों को देखा  ||

सावधान !

सावधान ! उनसे रहो , जो बोलें मधु सम बोल  | विश्वास पात्र होते नहीं ,  भेद न उनसे  खोल  ||

दोहा

ठेके देखो शहर के , पा गये मंत्री- दामाद  | अब कौन बचाये शहर को , होने से बरबाद || 

मुक्तक

तुम यदि ठान लो  तो, सूर्य अश्वों का भी मुँह मोड़ सकते हो   | तुम यदि ठान लो तो , मदमस्त तूफ़ान को भी रोक सकते हो  | तुम  भरत - पुत्र  हो , अपने को पहचानो  ................. , चाँद करे यदि गद्दारी  , तो राहू को चाँद बना सकते हो   |

मुक्तक

नैया मैंने तुमको दे दी , पर पतवार नहीं दूँगा  | अनवरत सिलसिला मौतों का ,यह अधिकार नहीं दूँगा  | सौगंध बाबा अमरनाथ की लेकर मैं कहता हूँ   , कश्मीर हमारा प्यारा है , तुमको कश्मीर नहीं दूँगा   |

मुक्तक

बिकता है देखो न्याय जहाँ , ऐसे यह न्यायालय हैं  | सत्ता के गलियारे देखो , बने आज वैश्यालय हैं  | ओहदों को लेकर घूम रहें वो  , चम् -चम् करती कारों में , मंत्रियों के राज महल बन गये , चोरों  के मुख्यालय हैं  |

मुक्तक

  शूल भी क्या फूल भी सब कँटीले हो गये  | डालियों पर जो लगाये फल कसैले हो गये  | बात किसकी अब करूँ आदमी या जानवर की , आदमी तो जानवर से भी विषैले हो गये   |

मुक्तक

शूल मेरा क्या करेंगे , जब शूल पथ मैंने लिया है  | सिन्धु मंथन जब हुआ , सारा गरल मैंने पिया है  | तोप के सम्मुख , वक्ष - ताने हम  खड़े  हैं   , जीभ मेरी जल न पाती , आग का भोजन किया है  |      

मुक्तक

चीर कर वक्ष देख आओ , व्योम का आधार क्या है  | नाप कर उर देख आओ , धरा का आकार क्या  है  | तुम युग के सूरज हो , युग मानव हो ------ झाँक कर तुम देख आओ , क्षितिज के पार क्या है    | 

मुक्तक

बम दिखाकर तुम मुझे भयभीत करना चाहते हो  | दनुजता  का  साथ देकर  रक्त  भरना चाहते   हो   | पंख तो पाये नहीं पर व्योम चुम्बन की पिपासा  , सूर्य - निगलोगे  , नहीं , वे मौत मरना चाहते  हो  |

मुक्तक

मैंने तो दीप जलाये थे  , फिर अंधिआरी कैसे आ छायी  | मैंने तो पुष्प सँजोएँ  थे  , फिर नागफनी कैसे उग आयी  | रात - रात बेचैन रहा , निद्रा को तजकर   ---------- मैंने तो सिन्दूर सजाया था  , फिर राखी कैसे ले आयी   |

मानवता

मानवता  बदल चुकी जब दानवता में  , तो भले गुलाबों में  , क्यों यह ठहरेगी  | जब घर - घर में नागफनी , उग आयी हो   , तो सदा  मनुजता  , काँटों में ही सिहरेगी  |

नेता

गरीबी मत दिखाओ  , छिन जायेगी  | रोटी बचाओ अपनी  , छिन जायेगी  | देखो अरे  ,   नेता आ रहा है  --- जिन्दगी बचाओ अपनी , छिन जायेगी  |

आँसू

कभी बनकर निकलते हैं , दिलों बहार यह आँसू   | कभी बनकर छलकते हैं  , ग़मों बौछार यह आँसू  | मंथन यहाँ होता  , दिलों - दिमाग पर जब हैं | हैं , दिखाते जिन्दगी   की  , तस्वीर यह आँसू  |

दोहा

धनी  हुआ तो क्या हुआ  , जो करे  न कौड़ी दान   | जीवन उसका व्यर्थ है  , जो जीता बिन सम्मान  || जग की चिंता न करे , लक्ष्य , जो पाना होय  | पथ में भूकें श्वान से  , पथ नहिं बाधित होय  || भाग्य सहारे बैठकर , मत  छोड़े  तू  आस  | बुद्धि ,शक्ति ,ज्ञान- बल , सब कुछ तेरे पास  || पंकज परिवर्तन देखकर  , काहे चित्त अधीर  | लाभ - हानि के सोच में , मुद्रा क्यों गम्भीर  ||

सोच

किसी को क्या पड़ी है , तुझे नीचा दिखाने की   | तेरे आमाल काफी हैं  , तेरी हस्ती मिटाने को   |