आदमी
बैठकर बारूद पर , तीली जलाता आदमी | लगाकर आग अपने गाँव में , है घर बचाता आदमी | मंदिरों और मस्जिदों में , है भेद करता आदमी | पंख जिसके कट चुके हैं , वह उड़ रहा है आदमी | विश्व्व की वायु प्रदूषित हो गयी जो , उस हवा को पी रहा है आदमी | किस पर करोगे विश्वास अब तुम ,आस्तीनी साँप बन चुका है आदमी |