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मई, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

दोहा

प्राणी ऐसा जगत में , जन्म न लिया कोय  |  होवे पूरा सदगुणी , अवगुण एक न होय  || पंकज विपदा  साथ दे , उसको अपना मान | जस सुनार घिस- घिस करे ,सोने की पहचान  ||

मम्मी

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आज मैं अपने ब्लॉग पर १००  वीं कविता प्रस्तुत करते हुए अपार प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ  | यह सब आप महान साहित्यकारों के प्यार ,सहयोग और आशीर्वाद के कारण ही संभव हो सका है , इसके लिये मैं आप सबका तहे दिल से आभार प्रगट करते हुए शुक्रिया अदा करता हूँ और आशा करता हूँ की भविष्य में भी ऐसे ही सहयोग प्रदान करते रहेंगे  | आज मातृ दिवस के विशेष अवसर पर  मैं पूजनीय मम्मी के लिये एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ  | आप सभी को मातृ दिवस की हर्दिक शुभकामनायें  | प्यारी - प्यारी मेरी मम्मी | सारे जग से न्यारी मम्मी  |   तुझसे ऊँचा कोई नहीं है , बहुत दुलारी मेरी मम्मी  | रोज सवेरे जगती मम्मी  | मुझमें ध्यान लगाती मम्मी | एक -एक आँसू पर मेरे  , आँसू- धार बहाती  मम्मी   | गुर्वोपरि है मेरी मम्मी  | देवोपरि है मेरी मम्मी  | चलना उसने मुझे सिखाया , मेरी प्राणाधार  है मम्मी  | सभी दुःख हर लेती मम्मी | हम पर प्यार लुटाती मम्मी  | अर्पण कर देती है  तन -मन , ममता -मूर्ति है मेरी मम्मी  |

दोहा

गोयटा जलता देखकर , गोबर हँसता जाय | पंकज क्यों है हँस रहा , कल तेरी बारी आय ||  

आँसू

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आँसू   विभीषण है , लंका का  | निकलते ही  कर देता है  , रहस्योदघाटन  आंतरिक मन का | थके जीवन का  |

अनिवार्य

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भ्रष्टाचार  उन्नति का , पर्याय  बन गया है  | इसीलिए - महँगाई  होना  अनिवार्य हो गया है  |

मुक्तक

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बदलते हुए परिवेश में , जरा देश देखिये  | फैशन रहा है बोल  ,    जरा केश देखिये  | मखमली सेज पर महलों में सो रहे हैं जो, वह दे रहें हैं युद्ध का  ,  आदेश देखिये  |

मुक्तक

इज्म की बैसाखियों से ,चाँद पाया आपने  | संदिग्ध मेघों के सहारे ,रवि छिपाया आपने  | क्षणिक है आनंद तेरा ,तुम  यह न भूलो  ,, शेष कुछ भी न बचेगा ,तूफां आने की देर है  |

उत्थान

हिन्दी संस्थान के , अध्यक्ष ने , हिन्दी उत्थान का ,  बीड़ा उठाया है  | इसीलिए ,उसने अपने बच्चे को , एक , अच्छे कान्वेंट में , भिजवाया है  |

व्यापार

देखो मानुष कर रहा  ,है  मौतों का व्यापार | पंकज यह क्या हो रहा , हर घर अत्याचार  || दूल्हा देखो बिक रहा ,खड़ा है बीच बाज़ार  | लाख -लाख का मोल है ,कैसा यह व्यापार  ||