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ग़ज़ल

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तू पथ पर अपने चलता चल  | मंजिल को पास बुलाता चल | सभी समस्याओं का मिलकर , बात -चीत से  निकले  हल  | कैसी भी हो आग भयानक  , कर सकते हो तुम शीतल  | मंदिर हो या गुरुद्वारा हो  , शीश झुका दें  गंगा जल  | चंदा -तारों से हम सीखें ,  कैसे रहते हैं यह हिलमिल | निश्वार्थ भाव से नदिया कैसे , कल-कल कर बहती अविरल | भेद न करती भारत माँ है  , सब पर फैलाये अपना आँचल | पंकज द्वैष-भावना  त्यागो , जीवन बन जायेगा परिमल  |