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मुक्त्तक

भीख माँगों  न उनसे , जो खुद माँगतें  हैं   | सहारा माँगों न उनसे , जो खुद छीनतें हैं   | शीश मत झुकाना कभी , उनके सामने , बैसाखियों पर दूसरों की , जो मौज करतें हैं  |

बदलना चाहिए

जहाँ चाँद मिथ्या दर्प से इठला रहा हो | सितारें विषमताओं की बात बोलें  | सूर्य कतरा धूप पर , करता हो दलाली  | गगन के परिवार में , जहाँ हों अपरिमित भेद , ऐसा नभ बदलना चाहिए | नर महा निर्माण का यह सिलसिला | मुझको लीक पर ही, सदा चलता मिला | परम्पराएं विषैली ,हों गयीं हैं  जहाँ  | राहें भुलाने पर तुली हों अब जहाँ  , ऐसा पथ बदलना चाहिए | जहाँ देहरी पर विषमताओं की कीलें जड़ीं  हों | चहुँओर  आँगन में समस्याएं मुहँ बाएँ खड़ीं हों  | जिससे मिलाता हाथ , वोह तो काट लेता  | जिसको समझता भ्रात, वोह  तो नाग  होता  | दोहरी प्रकृति के लोग रहतें हों जहाँ , ऐसा घर बदलना चाहिए | नीड़  का निर्माण करना , सोच का यह धर्म है | जन्मते , मरते पाऊँ शिखर यह  कर्म  है  | सम्भोग से सन्यास तक| आवास से आकाश तक| अधूरा बिम्ब जो देता रहा , ऐसा दर्पण बदलना चाहिए |

मुक्त्तक

                                                                               साधना को तुम मेरी , रीति न कहना  | विश्वास लिख रहा हूँ , गीत न कहना  | दीप , तिमिर से प्यार जब करने लगे , सूर्य आने तक उसे , तुम प्रीति न कहना |

मुक्त्तक

                                    महाभारत  होना तो निश्चित है , अर्जुन को गाण्डीव उठाना होगा | रण बीच खड़ा जब दुश्मन हो , तो शंखनाद करना होगा  | जब कपट खेल खेलना , चाहता  हो काल , तो कैलाश छोड़ शंकर को , धरती पर आना होगा  | सदिंयों से हम छमा दिखातें आयें हैं  | खुलें हृदय से प्यार लुटाते आयें हैं  | कोरी उदारता जब कायरता बन जाये , तो मर्यादा छोड़ , त्रिशूल चलाना होगा  |