घनाक्षरी
गोकुल के ग्वाल बाल,संग खेलें नंद लाल , कदम्ब पर बैठ कर , वो वंशी बजाते हैं । बरसात हो रही थी , घनी रात हो रही थी , इक - ऊँगली पर , गोवर - धन उठाते हैं। घर - घर छिपकर , नए - रूप धर कर , सब मित्रों के संग मिल , माखन चुराते हैं। गलियों में घूम - घूम नाच रहे झूम - झूम , सभी गोपियों के संग ,वह रास रचाते हैं । आदेश कुमार पंकज