घनाक्षरी
वो अयोध्या के चन्दन,वो कौशल्या के नंदन ,श्री राम प्रभुजी हम सबको हर्षाते हैं |
राज मोह छोड़कर ,वो आज्ञा को मानकर ,लखन सहित सीता ,राम वन जातें हैं |
रावण को मारकर, संतों को उबारकर , वो भक़्त बिभीषण को, राज दिलवाते हैं |
लोक मत सुनकर, निर्दयी मन बनके , वो सीता को त्यागने का, फैसला सुनाते हैं |
आदेश कुमार पंकज
राज मोह छोड़कर ,वो आज्ञा को मानकर ,लखन सहित सीता ,राम वन जातें हैं |
रावण को मारकर, संतों को उबारकर , वो भक़्त बिभीषण को, राज दिलवाते हैं |
लोक मत सुनकर, निर्दयी मन बनके , वो सीता को त्यागने का, फैसला सुनाते हैं |
आदेश कुमार पंकज
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें