मुक्तक : आदेश कुमार पंकज
सूरज , चाँद , सितारों के , द्वारे पर तम् के पहरे हैं । अनगिनत घाव दे मत पूछो , कि वे कितने गहरे हैं । चप्पे - चप्पे पर खड़े हुये, है घेरा बना लुटेरों का ,, कौन करे विश्ववास द्रोण पर , जब कौरव के घर ठहरें हैं ।
सागर सी गहराई हो
पर्वत सी ऊँचाई हो
रोम - रोम में खुशहाली हो
हर दिल में सच्चाई हो