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घनाक्षरी

गोकुल के ग्वाल बाल,संग खेलें नंद लाल , कदम्ब पर बैठ कर , वो वंशी बजाते  हैं ।  बरसात हो रही थी , घनी रात हो रही थी ,   इक - ऊँगली पर , गोवर - धन  उठाते हैं।  घर -  घर छिपकर  ,  नए - रूप धर कर ,  सब मित्रों के संग मिल , माखन चुराते हैं।   गलियों में घूम - घूम नाच रहे झूम - झूम ,  सभी गोपियों के संग ,वह  रास रचाते हैं ।  आदेश कुमार पंकज 

घनाक्षरी

वो अयोध्या के चन्दन,वो कौशल्या के नंदन ,श्री राम प्रभुजी हम सबको हर्षाते हैं | राज मोह  छोड़कर ,वो  आज्ञा को मानकर ,लखन सहित सीता ,राम वन जातें हैं | रावण को मारकर, संतों को उबारकर , वो  भक़्त बिभीषण को,  राज दिलवाते हैं | लोक मत सुनकर, निर्दयी मन बनके , वो सीता को त्यागने का, फैसला सुनाते हैं | आदेश कुमार पंकज