नक्षत्र : आदेश कुमार पंकज

हिन्दी जगत के मूर्धन्य कवि श्री सुमित्रा नंदन पन्त जी के जन्म दिवस पर आयोजित कवि सम्मलेन में (उनकी कर्म स्थली काला कांकड़ में ) भाग लेने का सुअवसर प्राप्त हुआउनकी कर्म स्थली की दशा देखकर अनायास ही निम्न पंक्तियाँ फूट पड़ी
जाने कितने कवि बना दिये,
दे देकर तुमने सु-मन्त्र
करता हूँ , मैं तुम्हें नमन ,
काला कांकड़ के हे - नक्षत्र
जब सारा जग सोता था ,
तो प्रहरी तेरा जगता था
वह पन्त तेरा महापुत्र ,
महाकाव्य वह रचता था
दिवस गयी , रात्रि गयी ,
बदला सभी नज़ारा
वीरान हो गया आज वही ,
बदल गया जग सारा
खंडहर हुआ वह उचां टीला ,
कुछ इतिहास बताता है
महा समर की पुण्य भूमि है ,
यह संदेश सुनाता है
अब विहगों ने नीड़ बनाया ,
करते हैं - वहां बसेरा
धेनु रंभाती सुंदर प्यारी ,
पशु - तरु करें सवेरा
पन्त नहीं है आज वहां ,
यादों में रोता रोज़ नक्षत्र
कब आयेगा कर्म पुत्र वह ,
उसे बुलाता आज नक्षत्र

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