आदेश कुमार पंकज का : गीत

यह दृश्य अपरचित लगता है ,
कोई घटना होने वाली है
कहीं बरस रहा झम - झम पानी ,
कहीं हवा चल रही तूफानी ,
कहीं पूरण का चंदा चमके ,
कहीं रात भयावह काली है
सब उल्टा - पुल्टा होता है ,
सोना भी मिट्टी होता है ,
जिस घर को अपना समझा था ,
वह घर अपनों से खाली है
कुछ अनचाहे मिल जाते हैं ,
कुछ बिन रोपें उग आते है ,
जिसको सींचा था पुष्प समझ ,
वह तो काटों की डाली है
कहीं फुटपाथों पर बचपन रोता ,
कहीं नर्म सेज पर कुत्ता सोता ,
कहीं सोने के थाल सज रहे ,
कहीं मिलती प्याली है
कहीं न्याय बिक रहा थानों में ,
कहीं जाम चल रहा मानों में ,
कहीं सूनी पड़ी झोपड़ी है ,
कहीं होती नित्य दीवाली है
कुछ सपनों को बुनते है ,
कुछ जीवन को चुनते है ,
जिसको मैं मौत समझता था ,
वह सच्ची जीवन थाली है

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