मुक्तक

मैंने तो दीप जलाये थे  , फिर अंधिआरी कैसे आ छायी  |
मैंने तो पुष्प सँजोएँ  थे  , फिर नागफनी कैसे उग आयी  |
रात - रात बेचैन रहा , निद्रा को तजकर   ----------
मैंने तो सिन्दूर सजाया था  , फिर राखी कैसे ले आयी   |

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ग़ज़ल

दोहा