तू पथ पर अपने चलता चल | मंजिल को पास बुलाता चल | सभी समस्याओं का मिलकर , बात -चीत से निकले हल | कैसी भी हो आग भयानक , कर सकते हो तुम शीतल | मंदिर हो या गुरुद्वारा हो , शीश झुका दें गंगा जल | चंदा -तारों से हम सीखें , कैसे रहते हैं यह हिलमिल | निश्वार्थ भाव से नदिया कैसे , कल-कल कर बहती अविरल | भेद न करती भारत माँ है , सब पर फैलाये अपना आँचल | पंकज द्वैष-भावना त्यागो , जीवन बन जायेगा परिमल |
प्राणी ऐसा जगत में , जन्म न लिया कोय | होवे पूरा सदगुणी , अवगुण एक न होय || पंकज विपदा साथ दे , उसको अपना मान | जस सुनार घिस- घिस करे ,सोने की पहचान ||
इज्म की बैसाखियों से ,चाँद पाया आपने | संदिग्ध मेघों के सहारे ,रवि छिपाया आपने | क्षणिक है आनंद तेरा ,तुम यह न भूलो ,, शेष कुछ भी न बचेगा ,तूफां आने की देर है |
बहुत सुन्दर मुक्तक. बधाई.
जवाब देंहटाएं"बहुत बढ़िया सत्यतः मानव में अपार शक्तियों वास है....."
जवाब देंहटाएंबेहतरीन। लाजवाब।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन।
जवाब देंहटाएंmaza aa gaya
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
bahut sunder muktak hai
जवाब देंहटाएंbahut sundar muktak laga .badhai!!
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