मुक्तक

इज्म की बैसाखियों से ,चाँद पाया आपने  |
संदिग्ध मेघों के सहारे ,रवि छिपाया आपने  |
क्षणिक है आनंद तेरा ,तुम  यह न भूलो  ,,
शेष कुछ भी न बचेगा ,तूफां आने की देर है  |

टिप्पणियाँ

  1. अच्छा मुक्तक है

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  2. वक्त का तूफ़ान सभी संदिग्ध बादलों को हटा देगा ...
    बहुत सुन्दर ... बधाई !

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  3. सागर सी गहराई हो
    पर्वत सी ऊँचाई हो
    रोम - रोम में खुशहाली हो
    हर दिल में सच्चाई हो
    कथनी और करनी एक होगी इस विश्वास के साथ - आभार और धन्यवाद्

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  4. शेष कुछ भी न बचेगा ,तूफां आने की देर है |
    जी बिलकुल

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  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

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