तू पथ पर अपने चलता चल | मंजिल को पास बुलाता चल | सभी समस्याओं का मिलकर , बात -चीत से निकले हल | कैसी भी हो आग भयानक , कर सकते हो तुम शीतल | मंदिर हो या गुरुद्वारा हो , शीश झुका दें गंगा जल | चंदा -तारों से हम सीखें , कैसे रहते हैं यह हिलमिल | निश्वार्थ भाव से नदिया कैसे , कल-कल कर बहती अविरल | भेद न करती भारत माँ है , सब पर फैलाये अपना आँचल | पंकज द्वैष-भावना त्यागो , जीवन बन जायेगा परिमल |
इज्म की बैसाखियों से ,चाँद पाया आपने | संदिग्ध मेघों के सहारे ,रवि छिपाया आपने | क्षणिक है आनंद तेरा ,तुम यह न भूलो ,, शेष कुछ भी न बचेगा ,तूफां आने की देर है |
बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव पहला दोहा में।
जवाब देंहटाएंपंकज विपदा में साथ दे , उसको अपना मान |
जैसे सुनार घिस कर करे , सोने की पहचान
उक्त दोहा को एक बार फिर से देख लें - कुछ सुधार की जरूरत है। यदि इन्ही शब्दों का प्रयोग किया जाय तो -
पंकज विपदा साथ दे उसका अपना मान |
जस सुनार घिस घिस करे सोने की पहचान।।
उम्मीद है अन्यथा नहीं लेंगे। शुभकामनाएँ।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
bahut sundar main bhi Shyamal ji ki baat se sehmat hun...
जवाब देंहटाएंदोहे के भाव बहुत अच्छे हैं....श्यामल जी के सुझाव से सहमत
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर दोहे हैं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..."
जवाब देंहटाएंआज के समय में दोहे में बात करना ...wt an idea sirji?
जवाब देंहटाएंgagar me sagar.
जवाब देंहटाएंbahit sunder likha.
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