आशुतोष त्रिपाठी की कविता : दस्तूर अनोखा

आतंक है एक गंभीर समस्या , इसके समक्ष है सब हैं लाचार
निरंतर बढती घोर अमावस्या ऊपर से पड़ती मंदी की मार
दुनिया का दस्तूर अनोखा जिसने पाला उसी को धोखा
नेता लगा रहे हैं हम सब की बोली पैसों से भरतें हैं अपनी झोलीं
किसको किसकी परवाह है कौन निभाता है अपनी जिम्मेदारी
अपनी अपनी ढपली देखो अपने अपने राग ,कैसे होगी शांत फैली है जो आग
किसी मोड़ पर हार मिलेगी किसी मोड़ पर जीत
हिम्मत कभी नहीं हारो तुम बन जाओ सहज विनीत

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ग़ज़ल

दोहा

मुक्तक