तू पथ पर अपने चलता चल | मंजिल को पास बुलाता चल | सभी समस्याओं का मिलकर , बात -चीत से निकले हल | कैसी भी हो आग भयानक , कर सकते हो तुम शीतल | मंदिर हो या गुरुद्वारा हो , शीश झुका दें गंगा जल | चंदा -तारों से हम सीखें , कैसे रहते हैं यह हिलमिल | निश्वार्थ भाव से नदिया कैसे , कल-कल कर बहती अविरल | भेद न करती भारत माँ है , सब पर फैलाये अपना आँचल | पंकज द्वैष-भावना त्यागो , जीवन बन जायेगा परिमल |
प्राणी ऐसा जगत में , जन्म न लिया कोय | होवे पूरा सदगुणी , अवगुण एक न होय || पंकज विपदा साथ दे , उसको अपना मान | जस सुनार घिस- घिस करे ,सोने की पहचान ||
इज्म की बैसाखियों से ,चाँद पाया आपने | संदिग्ध मेघों के सहारे ,रवि छिपाया आपने | क्षणिक है आनंद तेरा ,तुम यह न भूलो ,, शेष कुछ भी न बचेगा ,तूफां आने की देर है |
bahut sunder hai.
जवाब देंहटाएंdhanybad
thank you for nice poem.
जवाब देंहटाएंneelesh
बहुत सुंदर मुक्तक है पंकज जी
जवाब देंहटाएंविश्वास लिख रहा हूँ गीत न कहना
जवाब देंहटाएंप्रेरणा देने वाली पंक्ति है
धन्यवाद
ধান্যাভাদ ভালো মুক্তক কে ভাসতে
जवाब देंहटाएंসুস্মিতা বানার্জী সুষমা
বাদ বাজার কলকাতা