मैं हूँ कोयल
मैं हूँ कोयल प्यारी प्यारी ,
हर पक्षी से मैं हूँ न्यारी |
डाल - डाल फुदक -फुदक कर ,
मैं मीठा गीत सुनाती हूँ |
बागों की मैं रानी हूँ ,
सबमें खुशहाली लाती हूँ |
मीठे -मीठे सन्देशों से ,
सबका दर्द मिटाती हूँ |
मैं हूँ कोयल मतवाली ,
मैं हूँ कोयल काली -काली ,
मिसरी जैसी मेरी बोली ,
मेरी कोयलिया कूँ - कूँ से ,
झूम उठे क्यारी -क्यारी |
मैं हूँ कोयल प्यारी -प्यारी |
हर पक्षी से मैं हूँ न्यारी |
सुंदर कविता!
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"सरस्वती माता का सबको वरदान मिले,
वासंती फूलों-सा सबका मन आज खिले!
खिलकर सब मुस्काएँ, सब सबके मन भाएँ!"
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क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
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संपादक : सरस पायस
beautiful poem.
जवाब देंहटाएंAbhinav
Inspiring and beautiful poem.
जवाब देंहटाएंAbhinav