ओम प्रकाश अडिग की कविता :तुम मेरे भविष्य हो
प्रदर्शन के बाद ,
यदि कुछ बचा ,
तो तुम्हें दे जाऊँगा ,
तुम मेरे भविष्य हो ।
हम सब मिलकर -
ख़राब करतें हैं वर्तमान ,
मान या मान ।
तू भी ऐसा ही करेगा ।
सच्चाई हर जगह अच्छी होती है ।
तुमहें भी भुगतना होगा ।
अनास्थाओं के शरीर से -
निकलता हुआ लहू ,
उस लहू से रंगी हुई तस्वीर ,
हम इसी पहाढ़ की खूंटी पर टांग जायेंगे ,
तुम्हारे देखने के लिये ।
शायद प्रदर्शन के बाद इसके अतिरिक्त कुछ भी नही बचेगा ।
लहू और क्या रचेगा
यदि कुछ बचा ,
तो तुम्हें दे जाऊँगा ,
तुम मेरे भविष्य हो ।
हम सब मिलकर -
ख़राब करतें हैं वर्तमान ,
मान या मान ।
तू भी ऐसा ही करेगा ।
सच्चाई हर जगह अच्छी होती है ।
तुमहें भी भुगतना होगा ।
अनास्थाओं के शरीर से -
निकलता हुआ लहू ,
उस लहू से रंगी हुई तस्वीर ,
हम इसी पहाढ़ की खूंटी पर टांग जायेंगे ,
तुम्हारे देखने के लिये ।
शायद प्रदर्शन के बाद इसके अतिरिक्त कुछ भी नही बचेगा ।
लहू और क्या रचेगा
रोशन गंज , शाहजहांपुर (उ प्र ) २४२००१
The poem tum mere bhavishya ho is a very good poem. I congratulate to writer of this poem ie.sri Om Prakash Adig.
जवाब देंहटाएंDr. Satya Prakash Gupta
ALLAHABAD