आदेश कुमार पंकज की कविता : नारी माहात्मय

मत अपमान करो नारी का ,
यह तो जग की शान है ।
क्यों करते हो गर्भ में हत्या ,
यह तो तेरा मान है ।
आँगन की किलकारी यह है ,
बगिया की फुलवारी यह है ।
घर भर की खुशहाली यह है ,
हर ओठों की मुस्कान है ।
कभी यह प्रतिभा पाटिल बनकर ,
पूरे देश पर राज्य करे ।
कभी यह इंदिरा गाँधी बनकर ,
जग में रोशन नाम करे ।
कल्पना चावला बनकर इसने ,
दे दी नई उराहान है ।
माता बनकर के इसने ,
आचंल में हमें छिपाया ।
बहिन और पुत्री बन के इसने ,
पथ है हमें दिखाया ।
पत्नी बन यह कदम मिलाती ,
करती जीवन बलिदान है ।
आसुरी साम्राज्य मिटाने को ,
भिन्न -भिन्न यह रूप धरे ।
काली दुर्गा बन कर के यह ,
संकट सबके दूर करे ।
सृष्टी की कर्ता - हर्ता है ,
करती सबका कल्याण है ।

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