ग़ज़ल

तू पथ पर अपने चलता चल  |
मंजिल को पास बुलाता चल |
सभी समस्याओं का मिलकर ,
बात -चीत से  निकले  हल  |
कैसी भी हो आग भयानक  ,
कर सकते हो तुम शीतल  |
मंदिर हो या गुरुद्वारा हो  ,
शीश झुका दें  गंगा जल  |
चंदा -तारों से हम सीखें , 
कैसे रहते हैं यह हिलमिल |
निश्वार्थ भाव से नदिया कैसे ,
कल-कल कर बहती अविरल |
भेद न करती भारत माँ है  ,
सब पर फैलाये अपना आँचल |
पंकज द्वैष-भावना  त्यागो ,
जीवन बन जायेगा परिमल  |

टिप्पणियाँ

  1. कैसी भी हो आग भयानक ,
    कर सकते हो तुम शीतल |
    सुन्दर सन्देश देती हुई गज़ल
    उम्दा शेर

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  2. बेहद प्रभावशाली गजल।

    (आईये एक आध्यात्मिक लेख पढें .... मैं कौन हूं।)

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