ग़ज़ल
तू पथ पर अपने चलता चल | मंजिल को पास बुलाता चल | सभी समस्याओं का मिलकर , बात -चीत से निकले हल | कैसी भी हो आग भयानक , कर सकते हो तुम शीतल | मंदिर हो या गुरुद्वारा हो , शीश झुका दें गंगा जल | चंदा -तारों से हम सीखें , कैसे रहते हैं यह हिलमिल | निश्वार्थ भाव से नदिया कैसे , कल-कल कर बहती अविरल | भेद न करती भारत माँ है , सब पर फैलाये अपना आँचल | पंकज द्वैष-भावना त्यागो , जीवन बन जायेगा परिमल |
वाह! क्या बात है ! कमाल की पंक्तिया!
जवाब देंहटाएंwaah kya baat kahi sir...
जवाब देंहटाएंin char laino me bahut kuchh kah diya aapne,
जवाब देंहटाएंbahut khoob.
poonam
वाकई में अद्भुत..."
जवाब देंहटाएंGagar me sagar.Shubkamnayen.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, लाजबाब !
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