तू पथ पर अपने चलता चल | मंजिल को पास बुलाता चल | सभी समस्याओं का मिलकर , बात -चीत से निकले हल | कैसी भी हो आग भयानक , कर सकते हो तुम शीतल | मंदिर हो या गुरुद्वारा हो , शीश झुका दें गंगा जल | चंदा -तारों से हम सीखें , कैसे रहते हैं यह हिलमिल | निश्वार्थ भाव से नदिया कैसे , कल-कल कर बहती अविरल | भेद न करती भारत माँ है , सब पर फैलाये अपना आँचल | पंकज द्वैष-भावना त्यागो , जीवन बन जायेगा परिमल |
करारा व्यंग.."
जवाब देंहटाएंwaah achcha vyanga...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंवाह, क्या बात है !
जवाब देंहटाएंkya khoob likha hai aapne. aisa hi to hota hai.bahut hi badhiya vyang padh kar maja aa
जवाब देंहटाएंgaya.
poonam
प्रिय मित्र , नीलेश माथुर जी ब्लॉग ज्वाइन करने और उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआदरणीया पूनम जी ,
जवाब देंहटाएंमहत्व पूर्ण टिप्पणी के लिए आपको साधुवाद
सभी प्रशंसकों का हृदय से आभारी हूँ | आपके द्वारा हमारा उत्साह वर्धन ही हमारा सम्बल है |
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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