घनाक्षरी
गोकुल के ग्वाल बाल,संग खेलें नंद लाल ,
कदम्ब पर बैठ कर , वो वंशी बजाते हैं ।
बरसात हो रही थी , घनी रात हो रही थी ,
इक - ऊँगली पर , गोवर - धन उठाते हैं।
घर - घर छिपकर , नए - रूप धर कर ,
सब मित्रों के संग मिल , माखन चुराते हैं।
गलियों में घूम - घूम नाच रहे झूम - झूम ,
सभी गोपियों के संग ,वह रास रचाते हैं ।
आदेश कुमार पंकज
कदम्ब पर बैठ कर , वो वंशी बजाते हैं ।
बरसात हो रही थी , घनी रात हो रही थी ,
इक - ऊँगली पर , गोवर - धन उठाते हैं।
घर - घर छिपकर , नए - रूप धर कर ,
सब मित्रों के संग मिल , माखन चुराते हैं।
गलियों में घूम - घूम नाच रहे झूम - झूम ,
सभी गोपियों के संग ,वह रास रचाते हैं ।
आदेश कुमार पंकज
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें